दोस्तों नमस्कार में आज आपके सामने आपने जीवन की सच्ची घटना पर
आधारित एक कहानी लिख रहा हूँ उम्मीद करता हूँ आपको पसन्द आयेगी कही पर कोई गलती हो
तो कृप्या नया लेखक समझ कर माफ़ कर दीजिएगा और कमेन्ट के माध्यम से मेरा मार्ग
दर्शन कर दिजिगा | धन्यवाद
| बात
उस समय की है जब में इंटर में था, और
मेरी बोर्ड की परीक्षा चल रही थी परीक्षा सेंटर मेरे घर से करीब ४० किलो मीटर दूर
था | में
और मेरा मित्र लक्षमण सिह जो की एक फौजी था,
परीक्षा देने के लिए हम लोग घर से ही रोज जाते थे , हमारे कुछ पेपर सुबह वह कुछ दिन के समय
थे ,हम
दोनों ने तय किया की हम सुबह वाले पेपर स्कूटर से और दिन वाले पेपर बस से देने
जायेगे , हमारे
दिन वाले पेपर पहले थे , हमारे
यहाँ से सीधी बस सेवा न होने के कारण हमें अपनी बस करीब २८ किलोमीटर बाद बदलनी
पड़ती थी , हमारे
दो पेपर ठीक - ठाक
तरीके से हो गए , तीसरे
दिन हम घर से कुछ जल्दी आ गए २८ किलोमीटर का सफर तय कर के हम अपनी दूसरी बस का
इंतजार कर रहे थे | तभी
हमें अपना एक मित्र दिखाई दिया हम दोनों उस से बात करने लगे उसने हमें बताया की
उसने यही दुकान कर रखी है | और
पास मे ही मेरा कमरा है | वह
बोला चलो कमरे मे चलते है | हमारी
बस आने में अभी टाइम बचा था , हमने
सोचा क्या पता कभी कोई काम पड जाये इसलिए कमरा देख लिया जाय हम लोगो ने उसके कामे
में जाकर पानी पिया और हम वापस आकर बस का इंतजार करने लगे काफी देर इंतजार करने के
बाद बस नहीं आई तो मुझे बड़ी चिंता होने लगी ,
मैंने अपने मित्र से कहा जब हम लोग उसके वहा गए थे तब शायद
हमरी बस निकल गयी है | अब
क्या करे तभी याद आया की उसके पास मोटर साईकिल है ,
क्यु न मोटर साईकिल से ही पेपर देने जाय हम दोनों ने उसके पास
जाने का निश्चय किया वह अभी कमरे में ही था |
वह बोला में अभी खाना खा रहा हूँ , तुम लोग मेरी दुकान पर चले जाओ और मोटर
साईकिल निकाल कर दुकान की चाभी मुझे दे जाना हम लोग उसकी दुकान पर गए वहा पर उसकी
मोटर साईकिल खड़ी थी | राजदूत
कम्पनी का ओल्ड मोडल था जिसमे चाभी की जगह एक कील का इस्तमाल किया जा सकता है | काफी कोशिश करने पर भी जब वह स्टाट नहीं
हुई तो मैने अपने मित्र को उसके पास भेजा तो पता लगा उसमें तेल नहीं है ! मेरा मित्र
तेल लेने पास के पेट्रोल पम्प पर गया ,
और दोनों तेल लेकर साथ ही आ गए तेल मोटर साईकिल मै डालकर उसने
स्टाट कर के मोटर साईकिल मेरी हाथ में दे दी तभी मुझे हमारी बस दिखाई दी मैने अपने
मित्र लक्ष्मण सिह को कहा मोटर साईकिल को छोड़ कर बस से चलते है वह बोला अब तो तेल
भी ड़ाल दिया है , मोटर
साईकिल से ही चलेंगे मैने भी हा कह दी हम लोग मोटर साईकिल से परीक्षा देने चल दिए
हम बाते करते हुए मजे से चले जा रहे थे,
अभी हम करीब ४ किलोमीटर ही चले होगे मोटर साईकिल एकदम बंद हो
गयी मैने दुबारा स्टाट की फिर मोटर साईकिल फिर थोड़ी दूर चली और फिर बंद हो गई मैने
फिर स्टाट की मोटर साईकिल थोडा चलती फिर बंद हो जाती हमरी परीक्षा का टाइम हो गया
था | में
तो रोने लगा मेरा दोस्त बोला मुझे तो कोई चिंता मैने पड़ा भी नहीं है | लेकिन मेरी आखों के आगे अधेरा छा रहा था
| मेरा
दोस्त धक्का लगाते -लगाते थक गया था ,
वह सडक के एक किनारे बैठ गया था , अब तो बाईक भी स्टाट नहीं हो रही थी , रोते -रोते में भगवान को याद कर रहा था
और मोटर साईकिल में किक मार रहा था |
लेकिन मोटर साईकिल स्टाट होने का नाम नहीं ले रही थी | मुझे तभी माँ पूर्णागिरी की याद आई
मैंने उनका नाम ले कर के मोटर साईकिल में किक मारी मोटर साईकिल स्टाट हो गई , मैंने अपने मित्र को बैठने को कहा अब
हमारी मोटर साईकिल स्कूल के गेट पर कर बंद हो गई में मोटर साईकिल को खीच स्कूल के ग्राउंड
में खड़ी कर दी और परीक्षा रूम की और हमने दोड़ लगा दी हम लोग २० मिनट लेट थे | जल्दी से पेपर व कापी लेकर मै लिखने बैठ
गया मेरा पेपर ठीक से हो गया था | पेपर
छूटने के बाद में और मेरा मित्र मोटर साईकिल को धका लगाते हुए मोटर साईकिल की
दुकान पर ले गए मैकेनिक ने मोटर साईकिल की जाच कर बताया की पेशर वाली पाइप जंग लगकर
गली हुई है , और
वह बोला इस मोटर साईकिल की कंडीशन को देखकर तो यह लगता है , की यह कब से खड़ी थी , तभी मुझे ध्यान आया जब मैने उसकी दुकान
से मोटर साईंकिल को बाहर निकला था ,
वह धुल से सनी हुई थी ,
वह बोला यह चलाने लायक थी नहीं आप लोग कैसे ले आये मै समझ चूका
था , की
माँ पूर्णागिरी की कृपा से हम परीक्षा में बैठ पाये मैं इंटर में पास हो गया था ,में सिर्फ माँ की शक्ति से आज भी मै उस
पल को याद करके माँ के चरणों में नतमस्तक हो जाता हूँ , माँ शक्ति मै मुझे आज भी बहुत विश्वाश
है . कभी आपके सामने भी संकट पड़े तो अजमाकर दिखियेगा आपको निराश नहीं होगी जय -जय
माँ पूर्णागिरी माँ
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