सोमवार, 3 मार्च 2014

शिकार






दोस्तों आज में आपको जो कहानी सुनाने जा रा रहा हूँ वह शिकार के बारे में है ! वैसे तो शिकार करना गैर क़ानूनी है ! फिर भी लोग करते शिकार रहते है ! कोई शौक के लिए करता है ! कोई अपनी खानदानी परम्परा को निभाने के लिए करता है ! और कोई मनोरंजन के लिए करता है ! ऐसे ही शिकार के बारे में आपको बताता हूँ ! एक पहाड़ी गाव था जो चारो और से पहाड़ों से घिरा हूआ था ! उस गाव में शंकर नाम का एक किसान था ! जो शिकार का बड़ा शौकीन था ! उसने बहुत जानवरों का शिकार किया था ! उसने मुझे एक बार किस्सा बताया एक दिन वह और उसका पड़ोसी रतन शिकार के लिए जंगल गए उस दिन उन्हें कोई भी जानवर नहीं मिला वे लोग जानवर की तलाश में काफी दूर निकल आये थे, उन्हें घुमते-घूमते शाम हो गई और अधेरा होने लगा, तो घर की और चल दिए ! अधेरा होने के करण वह रास्ता भटक गए ! उनके पास टार्च भी नहीं थी ! उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था ! तभी उन्होंने देखा जंगल में कुछ दुरी पर मशाल जल और बुझ रही थी ! और साथ में कुछ आवाजें गुज रही थी | उन्होंने सोचा गाव वाले उनकों ढूढ़ते आ रहें है | वह भी उनकी और चल दियें ,वह जैसे ही आगे बड़ते मशालें और दूर जलने लगती,शंकर समझ चूका था | यह गाव वाले नहीं है | पर रतन अभी भी यही सोचा रहा जल्दी से गाव वालों के पास पहुच कर हम लोग अपने घर की और चल देंगे आज शिकार तो कुछ नहीं मिला, तभी शंकर ने रतन को रूकने के लिए कहा रतन रूक कर पूछने लगा क्या हो गया है | शंकर बोला यह गाव वाले नहीं है | रतन बोला क्या कर रहे हो यह गाव वाले नहीं है, तो कोन है | शंकर ने बताया यह भूत है जो हमें डराने की कोशिस कर रहे है मगर तूम डरना मत ये कुछ नहीं करतें है |बस डराने के अलावा मेरा सामना इनसे पहले भी हो चूका है | अब रतन का तो हाल बहुत बुरा हाल था वह डर के मारे काप रहा था ! शंकर ने रतन का डर दूर करने के लिए २-३ हवाई फायर भी किए जिससे मशालें जलनी कुछ कम हुई ! इसके बाद वह लोग बार बार आवाज लगा रहे थे, पास में ही एक गाव था वह सोच रहे शायद कोई उनकी आवाज सुनकर गाव वालों के साथ उनकों लेने के लिए आ जाय | गाव वालों ने उनकी आवाज तो सुनी पर उन्होंने सोचा जगल से कोई भुत आवाज लगा रहें है| इसलिए वह भी नहीं आयें , यहाँ रतन बार - बार भगवान से प्राथना किये जा राहा था ! हे भगवान आज बचा ले आज के बाद कभी शिकार करने नहीं आउगा, मेरे छोटे छोटे बच्चे है | हे भगवान दया कर वह तो इतना डर गया कि डर के मारे पैन्ट में ही उसने पेशाब कर दी ! डर तो शंकर भी रहा था | मगर वह रतन को बता कर और अधिक डराना नहीं चाहता था ! तभी शंकर देखा कुछ दुरी पर से दो आँखे उसे घुर रही है ! अब तो उसकी भी डर के मारे आवाज बैठ गयी !रतन ने जैसे उस और देखा वह तो वेहोश हो गया ! शंकर जोर -जोर से हनुमान चालीसा पड़ने लगा ! शंकर ने डरते हुए अपनी बंदूक उस तान कर फायर कर दिया ! उसने यह भी नहीं देखा कि निशाना लगा की नहीं पर उसे भागने की आवाज सुनाई दी ! वह समझ गया यह कोई जानवर था जो चारे की तलाश में आया था,शंकर का दिल अभी भी जोर जोर से धक-धककर रहा था | वह अपने को सामान्य करने की कोशिश कर रहा था | और इधर रतन अभी भी बेहोश था ! तभी बड़ी जोर से वरिश होने लगी,और रतन भी होश में आ गया वह अब भी डरा हुआ था ! वरिश के साथ विजली भी चमक रही थी ! शंकर और रतन ने वहा से चलने का फैसला किया !वह विजली की चमक पर रास्ता देख कर सावधानी से आगे बड़ने लगे अभी वह मुश्किल से एक किलोमीटर ही चल पाए की वरिश बंद हो गयी ! और रास्ता दिखाई देना फिर से बंद हो गया वह लोग एक पहाडी से नीचे उतर रहे थे,जो काफी खतरनाक था, वह लोग रूक गए तभी शंकर बोला यही पर रूक जाते है,एसे में आगे बढना ठीक नहीं है | रतन कुछ नहीं बोला वह तो अब भी डरा हुवा था | शंकर एक पेड़ का साहारा लेकर बैठ गया और शंकर का साहारा लेकर रतन बैठ गया | हवा चल रही थी ,वे लोग भीगे हुए थे ,ठण्ड भी लग रही थी .मगर क्या कर सकते थे ,सुबह के इंतजार के आलावा, शंकर भी समझ नहीं पा रहा था ! एसा क्यु हो रहा है, सुबह के 4 बजे के बाद जंगल में सब कुछ सामान्य होने लगा मशालें भी जलना बंद हो गयी ,करीब 6 बजे के आस पास वह लोग पहाडी से उतरने लगे उन्हें उतरने में करीब 1 घंटा लगा अगर वह रात में उतरने की कोशिश करते तो शायद ही वह सही सलामत होते| वह लोग वह बड़ी मुश्किल से घर पहुचे ! बुखार के कारण दोनों का हाल बुरा था ! गाव के ओझा ने दोनों का उपचार किया ! शंकर और रतन आज भी उस दिन याद करके डर जाते है !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें